सितम हवा का अगर तेरे तन को रास नहीं कहां से लाऊं वो झोंका जो मेरे पास नहीं
उम्र जलवों में बसर हो ये जरूरी तो नहीं हर शब-ए-गम की सहर हो ये जरूरी तो नहीं
आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझ मेंऔर फिर मानना पड़ता है कि खुदा है मुझ में
कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिजरां छोड़कर चल बसा वो आज सब हस्ती का सामां छोड़कर
का अगर तेरे तन को रास नहीं कहां से लाऊं वो झोंका जो मेरे पास नहीं
उम्र जलवों में बसर हो ये जरूरी तो नहीं हर शब-ए-गम की सहर हो ये जरूरी तो नहीं
आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझ मेंऔर फिर मानना पड़ता है कि खुदा है मुझ में
कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिजरां छोड़कर चल बसा वो आज सब हस्ती का सामां छोड़कर
सोचा था कि तुम दूसरों जैसे नहीं होगे तुमने भी वही काम मेरी जान किया है
इस तरह सताया है परेशान किया है गोया कि मुहब्बत नहीं अहसान किया है
एक टूटी हुई जंजीर की फरियाद हैं हम और दुनिया ये समझती है कि आजाद हैं हम
देख लो आज हमको जी भर के कोई आता नहीं है फिर मर के
मासूम है मुहब्बत लेकिन उसी के हाथों ये भी हुआ कि मैंने तेरा बुरा भी चाहा
रोग पैदा कर ले कोई जिंदगी के वास्ते सिर्फ सेहत के सहारे जिंदगी कटती नहीं
इश्क कहता है दो आलम से जुदा हो जाओ हुस्न कहता है जिधर जाओ नया आलम है
देखा न आंख उठा के कभी अहले-दर्द ने दुनिया गुजर गई गमे-दुनिया लिये हुये
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